मौकापरस्ती
रुख हवाओं का बदलता देखिएसूर्य पश्चिम से निकलता देखिए है धरा बहती यहाँ उल्टी सदासाँप का केंचुल उतरता देखिए © मोहन जी श्रीवास्तव “सत्यांश”
रुख हवाओं का बदलता देखिएसूर्य पश्चिम से निकलता देखिए है धरा बहती यहाँ उल्टी सदासाँप का केंचुल उतरता देखिए © मोहन जी श्रीवास्तव “सत्यांश”
कठिन है ये सफरव्यथित है मनहूं अकेला चंचल है मन।कैसे समझाऊं खुद कोकैसे रिझाऊंएक वेदना भरी हैअंगार सा उठा है।कोई समझ ना पाएएक भूचाल सा उठा है।कश्मकश की लहर नेबेसुध बना दिया हैउधेड़बुन के जाल नेजंजाल बना दिया है।कोई तो रोक लोमैं मर ना जाऊइस बीच भंवर मेंफंस ना जाऊ।कोशिश Read more
आओ हम सब मिलकर,एकता दिवस मनाए.अपनी भारत माता को,सुखी और समृद्ध बनाएं. लौह-पुरुष के जन्मदिन पर,आओ हम सब सौगंध,ये खाएं,जब तक है,हमारा जीवन,कोई इसके टुकड़े,न कर पाए. 565 रियासतों को जिसने,एक सूत्र में पिरोकर,यह भारत राष्ट्र बनाया,उस सरदार पटेल के जन्मदिन को,हम सब मिलकर,एकता दिवस के रुप में मनाया. क्या Read more
मुस्कराने के लिए जरूरी नहींपूरी तरहविज्ञापन में उतर जानाइन्सान के लिएतनाव रहित मस्तिष्कऔरपेट में अनाज का तिनकाहोठों की परिधि मेंमुस्कराहट को संतुलित रखते हैं। सिर्फ खुली हवा, पानी और धूप सेअहर्निश फूल मुस्कराते हैंइसीलिएजिंदगी के अंत: सौंदर्य मेंसबसे अच्छा हैमुस्कराने का तरीका फूलों से सीखनातमाम सक्रिय विरोधियों के होते हुए Read more
वक्त के हाथ में , अब भी वही कबीरा है ।चादर झीनी वही, घर अपना फूँक आते है ॥राग जीवन का मै,जब भी समझना चाहा ।दर्द में प्यार के, हर गीत उभर आते है ॥मानवीय रिश्तों पर, मॅडराती ये कैसी साया ।अपने लाशों को भी, पहचान से कतराते है ॥घुल Read more
चेहरों पर उभरी, चिंता की रेखाएंकहती हैं आदमी के संघर्ष की गाथाएंरोटियों को पाने की ललक मेंठहर जाता है वक्त।इज्जत के पानी और स्वाभिमान के आटे से गूँथी,तनिक भी,आँच बर्दाश्त नहीं करती ये रोटियाँलेकिन, आसानी से ठहर जाती हैं अपने ‘आब ‘मेंआग में राग है तो रोटियाँ खिल जाती हैंजीवन Read more
मन में याद, याद में तुम हो।तुझ में है सपने अनगिन॥आंगन है तुलसी का चौराऔर नीम यूँ झूम रही हैगिल्लू भागा दौड़ा फिरतागौरैया कुछ चुंग रही हैबाबा की धोती गीलाकरमुनुवा रोये हर पल -छिनमन में याद,याद में तुमहो … अनगिन॥याद तुम्हारी आए जब भीपूनम के खिलते -खिलतेचकवा- चकवी की दूरी Read more
खुली हवा में साँस लेने का सुखउस कबूतर से पूछोजो पिजड़े में कभी कैद न हो ।मुक्त गगन में दम्भ भरता हैउड़ने की कलाबाज़ी दिखाता हैनजदीक से इंद्रधनुष छूकरलौटने पर इतराता है ।पर कितना कठिन हैखुशी-खुशी सुहागिनों को अपनी मांग अपने हाथों पोंछना ।चूड़ियों को बेरहमी से फोड़ना । कितना Read more
लड़कियों के पैदा होने वबाप के लिए चिंता का बीजबोनेकी वजहसमाज द्वारा खाद पानीदहेज के रुप में जड़ों में डाला जाना हैक्योंकि जड़ें खाती हैं।पूरा पेड़ लहलहाता है।बाहर से भले ही पिता मुस्कुराता हैपर अंदर ही अंदर टूटता चला जाता है।शिकायत है तो सिर्फ पढ़े-लिखे लोगों सेक्योंकि यही समाज, दहेज Read more
मूल्यहीनता की छायाऔर भ्रष्टाचार का धूप हैजाने क्यूं !आजकल आईना चुप हैहर बात एक बिंदु पर आकरसलट जाता हैइसीलिए आईना टूटता बिखरता तो हैसच दिखाने और कहने का साहस भी है उसमेंपर हवा के सानिध्य में आते हीपलट जाता हैजब तक हम यह सोचते हैं कि इसके पीछे कौन है?तबतक Read more