मुस्कराने के लिए जरूरी नहीं
पूरी तरह
विज्ञापन में उतर जाना
इन्सान के लिए
तनाव रहित मस्तिष्क
और
पेट में अनाज का तिनका
होठों की परिधि में
मुस्कराहट को संतुलित रखते हैं।

सिर्फ खुली हवा, पानी और धूप से
अहर्निश फूल मुस्कराते हैं
इसीलिए
जिंदगी के अंत: सौंदर्य में
सबसे अच्छा है
मुस्कराने का तरीका फूलों से सीखना
तमाम सक्रिय विरोधियों के होते हुए भी
मुस्कराने की तहजीब
नहीं छोड़ता है फूल

भयंकर गर्मी, शीत, आँधी और तूफान
इनके बीच मुस्कराते रहना
कितना कठिन है
वह भी
ऐसे में,
जब सभी एक-एक कर बारी-बारी से
आजमाते हैं।
ये सही है कि
फूलों के लाख आग्रह पर भी
एक तबाही के बाद ही आँधियाँ ठहरती है
लेकिन-
इन सबके बावजूद
फूलों का मुस्कराना कम नहीं होता

समस्त अंतर्विरोधी गतिविधियाँ
जब फूलों की मुस्कुराहट को

कम नहीं कर पाती तो
एक अच्द्दे सहयोगी बन जाती हैं
और
अपनी विवशता में ही सही
साथ-साथ मुस्कराती हैं
मुस्कराने के क्रम में बढ़ जाती हैं
काँटों से भी उनको नज़दीकियाँ
लेकिन
इन सबसे अलग एक मुस्कराहट इंसान की
जिंदगी में भी है
जो लुहार को धौंकनी में
खुशी-खुशी आग के साथ मिलकर
गढ़ लेता है-
घोड़ों के जबड़ों में लगाये जाने वाले लगाम
जिसके परम स्वाद से
अगला पैर हवा में उछालकर
खुशी में
हिनहिना उठता है घोड़ा
गढ़ लेता है एक हँसिया और फावड़ा
जिसके उपयोग से
लहलहाती फसल को देख
पूरा परिवेश मुस्करा उठता है

जिंदगी के तमाम सूखे- हरे पत्ते झोंक चुकी
चौराहे पर दंतहीन श्यामल बुढ़िया
नब्बे वर्ष की अवस्था में
आँचल से नाक पोंद्दती
अनुभव की आँच में
रोज बहाती है
गरम बालू अपना पसीना
ग्राहकों के आने पर
अठन्नी खूँटें में गठियाती
गरम बालू में दाने को खिलता देख
मुस्करा उठती है।

© डॉ. कुमार विनोद


Dr. Kumar Vinod

Dr. Kumar Vinod

केन्द्रीय नाजिर - सिविल कोर्ट, बलिया

1 Comment

Mahesh Verma · February 19, 2022 at 10:49 am

उत्कृष्ट रचना!!???

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