सिर्फ़ रात ही नहीं बीतती
बीत जाता है दिन भी
दीए का तेल ही नहीं जलता
जल कम होती है बाती भी

दु:ख होतें हैं ख़त्म तो
सुख भी बीत जाता है
आते हैं सब जाने के लिए
समय चक्र यही बतलाता है

मेजबां कोई नहीं
यहां मेहमां हैं सभी
बीत जाता है सब कुछ
यहां धीरे-धीरे

बीत जाएंगे हम भी
यहां धीरे-धीरे
बीत जावोगे तुम भी
यहां धीरे-धीरे।

©धनंजय-शर्मा


Dhananjay Sharma

Dhananjay Sharma

बोलें तभी जब वो मौन से बेहतर हो

1 Comment

Chanchalika Sharma · May 25, 2022 at 9:21 pm

बहुत सुंदर रचना

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