प्रकृति के शाश्वत क्रम में
समुद्र में ज्वार -भाटेआते रहते हैं
यह क्रम जैसे ही व्यतिक्रम होता है
प्रकृति के साथ होती है
मनमानी
निश्चित तूफान उठ खड़ा होता है
लहरें हो जाती हैं सुनामी
इसीलिए चाहे भूकंप हो या
ज्वालामुखी
प्रकृति के नियमों के विरुद्ध जब
भी कहीं खोट होता है
अतिरिक्त दबाव पड़ने से निश्चित
विस्फोट होता है
जीवन का कर्म भी शाश्वत है
हारने से ,थक जाने से, धैर्य खोने
से ,
सूर्य का रथ नहीं रुक सकता
मै चाहता हूँ सूर्य का रथ रुके नहीं
बल्कि नियमित चले
क्योंकि इस प्रकार चलने से
चिड़िया अपने घोंसले में
किसान अपने घरों में ,
जानवर अपने माद में सुरक्षित
वापस लौट सकते हैं
सब कुछ व्यवस्थित,
सब कुछक्रमबद्ध..
हम नहीं थोप सकते दूसरे पर
अपनी इच्छा
और प्रकृति भी कभी नहीं कर
सकती किसी के प्रतिक्षा
इस सत्य को उद्घाटित करने के
लिए
इतना ही पर्याप्त है कि
सूर्य का रथ अस्ताचल में चले
जाने के बाद भी
हम खोजते रहते हैं
मोमबत्ती या दीपक लेकर
रात भर व प्रकाश
और लाख चाहने पर भी नहीं
मिल पाता है वह नीला आकाश
पुनः अपने समय पर ही होता है
उजास
जीवन का क्रम भी इसी के है
आसपास
मत हो हताश
कर्म पथ पर आगे बढ़ते हुए
नियमों से आवद्ध हो जाओ
प्रकृति का क्यों करते हो दोहन
मत करो छेड़छाड़ और
प्रदूषण .की फार्मिंग
ग्लेशियर पिघल रहे हैं
हो रहा है ग्लोवल वार्मिंग
मत काटो वृक्ष
कचरे से क्यों करते
हो मनमानी
ओजोन पर्त में भी छिद्र हो रहे है।
मुझे आहट सुनाई देती है
एक न एक दिन पानी के लिए भी
होगा हाहाकारी , मारामारी
अब और मत उकसाओ
मत करो पृथ्वी के माहौल का
विनष्ट कर
चॉद पर रहने की बात
पूर्णत:प्रकृति के साथ हो जाओ
सच कहता हूँ।
यदि ऐसा तुम कर सकोगे तो
आक्सीजन के अस्तित्व से संबंधित
कोई खतरा नहीं होगा
ना उठेंगे तूफान
न फूटे ज्वालामुखी
न ही ग्लेशियर पिघलेंगे
न हीं होगा सुनामी जैसी तबाही
वरना ! तुम्हें एक न एक दिन
प्रदूषण के खिलाफ देनी ही होगी
सामूहिक रूप से गवाही ।
© डॉ० कुमार विनोद
0 Comments