पात्र –

हैक्टर – एक विवाहित युवक.

हेलेन -हेक्टर की खूबसूरत पत्नी.

जैकब – हेक्टर का मित्र.

ऑलिवर – हेक्टर का पुत्र.

दृश्य – एक ( पर्दा उठता है )

(एक सुसज्जित कमरे में हेलन और हैक्टर)

हेलेन – हैक्टर ये क्या, तुम फिर से अपनी पुस्तक ले के बैठ गए, तुम या तो विचारों मे या अध्ययन में मगन रहते हो.

हैक्टर – मैं क्षमा चाहता हुँ.
हेलन, पर मैं क्या करू, ये मेरा ज्ञान-पीपासा शांत ही नहीं होता, रोज नये – नये प्रश्न मुझसे नये – नये प्रश्न करते है.

हेलेन – ओ तो ठीक हैं, परन्तु तुम्हारी ज्ञान-पीपासा परिवार की ज़िमेदारियों से तुम्हे बिमुख कर रही हैं, जानता हूँ प्रिये…..

(तभी दरवाजे की घंटी बजती हैं)
हेलेन – लगता है ऑलिवर आ गया.
(दरवाजा खोलती है)

ऑलिवर – मॉम आज मै अंकल जैकब के घर गया था. उनका बिज़नेस तो आग की तरह फैल रहा है.

हेलेन – ये तो बहुत अच्छी खबर है .

ऑलिवर – मॉम मैं अंकल जैकब से बिज़नेस के फीचर्स सीखना चाहता हूँ.

हैक्टर – ये तो बहुत अच्छा विचार है, जैकब तो बहुत ही अच्छा इंसान है और मेरा मित्र भी, इसके बारे में, मै उससे बात कर लूंगा.

दृश्य -दो

(पर्दा उठता है)

(एक अव्यवस्थित ऑफिस का दृश्य, हैक्टर व जैकब आमने – सामने बैठे हुये )

हैक्टर – हैलो फ्रैंड तुम अपने इस ऑफिस का क्या हाल बना रखा है, तुम इन बिखरे हुए पेपर्स में काम की चीज कैसे ढूंढ लेते हो?

जैकब – तुम तो जानते हो मित्र, इस ब्यवसाय ने कितना व्यस्त कर दिया है, सांस लेने की भी फुर्सत नही है.

हैक्टर -जानता हूँ, तुम्हे अपने बिज़नेस से कितना प्यार है,और लिली का क्या हाल है, सुना है, उसने दुसरी शादी कर ली?

जैकब – हाँ,सब मेरी ही गलती है, इस कम्बख्त बिज़नेस ने मुझे लिली से अलग कर दिया.

हैक्टर – तुम्हारी बेटी, इमिली कैसी है?

जैकब – अच्छी है,कोर्ट ने उसकी कस्टडी पता नही क्या सोच कर मुझे दे दी, मैं उसका केयर भी तो नही कर पाया, कैलिफोर्निया के टॉप हॉस्टल में एड्मिसन तो करा दिया है मैने,पर क्या यह प्रयाप्त है? क्या इतने से मेरी ज़िमेदारिया समाप्त हो जाती हैं?

हैक्टर – सो तो है, देखो ना मेरा भी अध्ययन मेरे परिवार के पालन पोषण के आड़े आ रहा है और मेरी ज्ञान-पिपासा तो शांत ही नही होती, जीतना अध्ययन करता हुँ, उतने ही प्रश्न उत्पन्न हो जाते है, और उनके उत्तर पाने के लिए और अध्ययन करना होता है.

जैकब – कर्म का जिक्र तो तुमने ही किया था, क्या वह यही है?

हैक्टर – हाँ शायद.

जैकब – तुम दार्शनिक लोग कभी भी किसी निर्णय पर क्यों नही पहुंच पाते?

हैक्टर – क्योंकि , काल के साथ परिभाषा भी बदलती रहती हैं, अभी थोड़े समय पहले तक किंग हुआ करता था,जो किसी को न्याय दिलाने के लिए गुनहगार की हत्या कर सकता था, यह उसका कर्म था, परन्तु अभी किंग जो की जनता के द्वारा चुना गया हैं ऐसा नही कर सकता. अब यह न्यायालय का कर्म हैं.

जैकब – ये तुम्हारी गहन बातों पर मैं विचार करू तो मेरा बिज़नेस ही बंद हो जायेगा. और बताओ अपना हाल – चाल?

हैक्टर – तुम तो जानते ही हो मेरी आर्थिक स्थिति के बारे मे, ऑलिवर बता रहा था की तुम उसकी बिज़नेस की समझ की प्रशंसा कर रहे थे?

जैकब – हाँ, ऑलिवर के बिज़नेस की समझ की तो दाद देनी पड़ेगी, उसके आते ही ऑफिस का माहौल ही बदल जाता हैं, ये देखो ऑफिस का हाल, लेकिन अगर ऑलिवर होता तो ये हाल न होता.

हैक्टर -मैं ये कह रहा था की इस साल वो ग्रेजुएट भी हो रहा हैं, अगर तुम उसे नौकरी पर रख लो तो तुम्हारी मदद भी हो जायेगी और मेरी आर्थिक स्थिति थोड़ी ठीक ही जायेगी?

जैकब – तुमने तो मेरी मुँह की बात छीन ली, तुम उसका ग्रेजूएशन पुरा होते ही यहां भेज देना.

हैक्टर – खुश होते हुये, धन्यवाद मित्र अब मैं तुम जैसे ब्यस्त आदमी का ज्यादा समय नही लूंगा, अब मैं चलता हुँ.

जैकब – तुम्हारे आने से मेरा मन हल्का हो जाता है मित्र!
थैंक्यू वेरी मच.

दृश्य – तीन

(पर्दा उठता है)

(समुन्द्र के किनारे एक तरुण युवती एक स्टोन पर बैठी हुई समुन्द्र की तरफ एक तक दृस्टि से देखती हुई, एक तरुण युवक उसकी तरफ बढ़ता है)

एला – इमिली, तुम यहाँ बैठी हो, तुम्हे मैं चारो तरफ ढूंढ रहा था.

इमिली – आओ ऐला बैठो.
(ऐला पास ही एक स्टोन पर बैठ जाता है)

एला – तुम अपनी फ्रैंड्स से दुर अकेली चुप – चाप यहाँ क्यों बैठी हो?

इमिली – तुम्हे तो पता है कि मेरी अभिरूचि खेल खुद मे नही हैं.मेरी सारी फ्रैंड्स बीच वॉलिबॉल खेल रही थी इस लिए यहाँ चली आई.

एला – और, यहा आ कर क्या सोच रही थी?

इमीली – वही, की मेरी मॉम मुझसे कभी मिलने क्यो नही आती, मैं तो भूल गयी हुँ, कि हमारी मुलाक़ात कब हुई थी!

एला – इमिली या तो मैं तुम्हे पुस्तकों मे या मैं तुम्हे अपने मॉम – डैड कि ख्यालो मे ही खोये हुए देखता हुँ.

इमिली – हा एला, मेरे डैड को भी तो बहुत समय हो गया मुझसे मिले हुये, वो तो अपने बिज़नेस मे ही बिजी रहते हैं.

एला – मैं तो, तुम्हारे पास कब से बैठा हूं, पर तुम मेरे बारे मे क्यो नही सोचती?

इमिली – शायद इस लिए की तुम मेरे पास हो!

एला – क्या हम कभी दोस्त नही हो सकते?

इमिली – तुम तो मेरे सबसे अच्छे दोस्त हो. परन्तु तुम्हारा इसारा मै समझ रही हूं, प्यार…. , मैं कुछ कह नही सकती.

एला – तुम बहुत निष्ठुर हो इमिली!

इमली – क्या तुम भारत के नायक – नायिका राधा – कृष्ण के प्रेम को पढ़ा है?

एला – नहीं, लेकिन समय मिलेगा तो जरूर पढ़ लूंगा, क्योंकि मैं जानता हूं कि, मेरे प्रश्न का उत्तर वही मिलेगा.

दृश्य – चार

(एक होटल का परिदृश्य, हॉल मे चहल – पहल का माहौल, पार्टी से बाहर बालकनी मे खड़ी एक युवती रोड पर आती – जाती वाहनों को देखते हुये खड़ी हैं,तभी उसकी फ्रेंड हॉरपर वहा आती है)

हॉरपर – लिली तुम यहां हो तुम्हे फ्रेडी ( लिली का दुसरा हस्बैंड ) वहा ढूढ रहा है.

लिली – ये शोर – शराबा ये पार्टी, इनसे मेरा मन ऊब गया है.

हॉरपर – पर, तुम्हे तो ये अच्छा लगता था.

लिली – हाँ,पर अब नहीं. सोच रही थी की इमीली मेरे बारे मेरे क्या सोचती होंगी कि मैं कैसी मॉम हुँ,जो अपनी बेटी से मिलने भी नही आती?

हॉरपर – तुम तो कह रही थी कि तुम्हारा उससे मिलना उसे अच्छा नही लगता है.

लीली – हाँ वो तो है मेरे मिलने से उसके जख्म हरे हो जाते हैं,और फ्रैंडी कहता तो नही है, परन्तु उसे भी अच्छा नही लगता हैं.

हॉरपर – परन्तु अगर तुम इसी तरह फ्रैंडी से दुर रहोगी तो कही फ्रैंडी को वही शिकायत न हो जो तुम्हें जैकब से थी.

दृश्य – पांच

(पर्दा उठता हैं)

(एक गोल डाइनिंग टेबल के चारो तरफ हैक्टर, हेलेन जैकब,और इमीली बैठे हुये हैं खाना सर्व हो चुका है, तभी वहा ऑलिवर आता है)

ऑलिवर – सॉरी मॉम , सॉरी जैकब अंकल, मीटिंग की वजह से देर हो गयी.

जैकब – कोई नही बेटे आओ बैठो हम तुम्हारा ही इंतजार कर रहे थे.

ऑलिवर – हेलो इमिली, कैसी हो?

इमिली – फाइन, अच्छी हूँ,

ऑलिवर – तो, तुम्हारा ग्रेजुएशन के बाद क्या प्लान हैं.

इमिली – मैं भ्रमण करना चाहती हुँ. विशेष रुप से एशिया मे!

हैक्टर – ये तो बहुत अच्छा विचार हैं, मै भी एशिया का भ्रमण करना चाहता था.वहा पर बहुत पुराने और गहन लेख मौजूद हैं, जैन, बौद्ध,हिन्दू, और सिख धर्म के पुस्तकों मे बहुत कुछ हैं जिसे जानने और समझने की जरुरत हैं.

जैकब – क्या तुम दोनों इस शाम को फिलासफी को समर्पण करना चाहते हो?

इमिली – क्या करू डैड ये ज्ञान-पिपासा शांत ही नही होती.

(सब लोग हैक्टर की तरफ देखते हैं पर्दा धीरे धीरे गिरता हैं)

© अमन वर्मा

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