यूं तो बेंच है
बैठने की वस्तु
और पुल…
इस पार से उस पार
जाने और
आने की इमारत
बावजूद इसके
बेंच…
खुद पर बैठे लोगों को
उतना नहीं जोड़ पातीं
जितना कि
जोड़े रखती है
किसी पतली नहर पर
बनी छोटी सी पुलिया

वैसे ही
जैसे डाइंग रूम में
बैठें लोगों को
राजनीतिक बातें
उतना नहीं जोड़ पाती
जितनी कि
जोड़े रखतीं हैं
दुआरों पर
जलने वाले कौड़े
के चारों ओर
लगने वालीं
बैठकों में
होनें वालीं
सामाजिक बातें
खिस्सें और कहानियां।

© धनंजय शर्मा


Dhananjay Sharma

Dhananjay Sharma

बोलें तभी जब वो मौन से बेहतर हो