अब न कहीं युद्ध होगा
न रहेगी अशान्ति।
न कोरोना होगा
न ही किसी को रोना होगा
न होगी महामारी
चहुँओर चहकेगी किलकारी
न अपनो को खोना होगा
न ही किसी की आँख आँसुओं से भिगोना होगा ।
जो गिरे है
वे पूर्ण मनोवेग से उठेंगे
चाहें व्यक्ति हों या अर्थ ।
कोशिशें अब नहीं होंगी
व्यर्थ ।
चाहे समर्थ हो या असमर्थ ।
बोयेंगे हम सामर्थ्य
फिर काटेंगे ।
असमर्थों में बाँटेंगे।
उन्हें भी समर्थ बनाएंगे।
फिर साथ -साथ गायेंगे
मेरे देश की धरती
उगले सोना ,
उगले हीरा -मोती
और फिर से सोने की चिड़िया कहलायेंगे।
सपने साकार होंगे
हौशलों से उड़ेंगे
अपना इन्द्रधनुष भी पायेंगे
पहुंचेंगे ….अनन्त पर
एक और नचिकेता बन
माप लेंगे फर्श से अर्श
ऐसा होगा हमारा ये नूतन नववर्ष।
© डॉ० कुमार विनोद
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