काका भोरे-भोरे जात बाड़ कहवाँ,
बतइतऽ संगे हम्हूँ चलितीं।।

तहरो मोटरिया के, ले लिहिती माथ पर
हथवा उठाइ के, सम्हारि लिहिती कान्ह पर
जहाँ थकितऽ त गोड़वो दबइतीं,
बतइतऽ संगे, हम्हूँ चलितीं।।

जदि तुहूँ जात होखऽ ददरी के मेला,
सरकस-मदारी वाला, होला ओजा खेला,
हम्हूँ कीनि कठपुतरी नचइतीं,
बतइतऽ संगे, हम्हूँ चलितीं।।

माई खाती सूई-डोरा, बुचिया के घँघरी,
गुरही जलेबी-खजला, बान्हि लेती गठरी,
अँवरा-नीबुओं अँचार के ले अइतीं,
बतइतऽ संगे, हम्हूँ चलितीं।।

© शिव जी पाण्डेय “रसराज”