बलि राजा के रजधानी, तपसी के तप आधार,
अनोखा बलिया जिला हमार।

दरदर के पावन धरती पर, भृगु जी धइले पाँव,
कोटि चौरासी मुनिगन आ के, घुमलन गाँवे-गाँव,
फलित ज्योतिष के निरनय भइले, भृगु संहिता आधार।
अनोखा बलिया जिला हमार।

व्यालिस के जनक्राँति के, मिलल बड़ा सम्मान,
बलिदानी के बलिदानन के, होत रहल नित गान,
गंगा-सरजू-तमसा बीचवाँ, फूटे किरिनि हजार।
अनोखा बलिया जिला हमार।

उमड़लि नदी मेटावत गईल, जस गज होखे मतंग,
तबो न कम होला बलियावी, के मन भरल उमंग,
जहाँ क्राँति संघर्ष से जनमें, सहि-सहि विप्लव मार।
अनोखा बलिया जिला हमार।

विपदा-प-विपदा आइल पर, भइल ना बाँका बाल,
चंदा खातिर थरिया अइसन, लागे सुरहा ताल,
देस-विदेश के चीरइयन के, करत रहल सत्कार।
अनोखा बलिया जिला हमार।

सउख से खालन बाटी-चोखा, दूध-दही भरि घाँटी
आगत के सेवा में इनकर, बनल रहल परिपाटी,
हाबुस-होरहा आ सतुआ संग, चटनी-मिर्च-आचार।
अनोखा बलिया जिला हमार।

धोती-कुर्त्ता माथे पगरी, कांहे गमछा धारे,
जेहन में डर ना जेकरा ऊ, हलधर कबो न हारे,
खेतन में सोना उपजावे, गावे मियाँ मल्हार।
अनोखा बलिया जिला हमार।

नेता-अभिनेतन की जननी, ई धरती अभिमानी,
जुगन-जुगन से जानल-सूनल, एकर अमिट कहानी,
पानी उतारी ना पावल केहू, ह एतना जियतार।
अनोखा बलिया जिला हमार।

शिक्षा-धारा प्रवाह ना टूटल, बनल ई लहुरी काशी,
जन.कल्यान के खातिर कतने, बनि गइले संयासी,
इहवो त ‘रसराज’ मिलेला, सब ऋतुवन क प्यार।
अनोखा बलिया जिला हमार।

डर ना एकरा लागे कबहीं, हवे वीर मरदाना,
प्रेम से जनवों मंगला पर ना, कइलसि कबो बहाना,
बे मँगले बाँटत चलि आइल, आपन सहज दुलार।
अनोखा बलिया जिला हमार।

© शिव जी पाण्डेय “रसराज”