हर घर की
लाइफ-लाइन होतीं है औरतें
यह तुम मानों या न मानों
कोई फ़र्क नहीं पड़ता उनको
प्रूफ करना/कराना
उनकी विषयवस्तु नहीं
पर यह जान लो तुम
कि, सिलवटें चादर की हों
या, जिंदगी की
दुरूस्त करती हैं वहीं
उनकेे ना रहने से
बंद हो जाती हैं बोलियां
चाहें तुम्हारी हों,
या फिर हो कुकर की
सजीव हो या हो निर्जीव
घर को, घर-संसार को
चमकदार बनातीं हैं वो
जननी हैं, पोषणी हैं,
रसोईयां हैं, डाक्टरनीं हैं
मोरल सपोर्टर हैं, संकटों में
संकटमोचन हो जातीं हैं वों
हालिडें उनका खुद के लिए
कभी नहीं होते
पर‌ बैंक हालिडें पर,
बैंक भी बन जातीं हैं वों।

© धनंजय शर्मा


Dhananjay Sharma

Dhananjay Sharma

बोलें तभी जब वो मौन से बेहतर हो