Kavita / Shayari
अहबाब – मित्रगण
आँखों ही आँखों में मुलाक़ात हो जाती हैजुबाँ खुलती भी नहीं मगर बात हो जाती है. बैठे रहते हैं यूँ ही तेरा तसव्वुर किये हुएजाने कब दिन आता है कब रात हो जाती है ग़ैरमुमकिन है कहीं और शिक़स्त खा जाएँमगर दिल के खेल में अक्सर मात हो जाती है Read more…